एक वो दिन थे, एक ये भी हैं...
सोमवार का दिन दो बड़ी ख़बरें...पहली ख़बर एक भारतीय अधिकारी को एक निजी कम्पनी ने नब्बे करोड़ सालाना की नौकरी दी......दूसरी बड़ी ख़बर एक निजी चैनल के निजी पत्रकार के पास अड़तालीस रूपए पाए गए.......इस पत्रकार के लिए ये अड़तालीस रूपए बेहद ख़ास थे.....इस धनराशि में तीन एक-एक रूपए के सिक्के भी थे.....वो पत्रकार तैयार होते वक्त बार-बार अपनी महंगी जिन्स में इन सिक्कों को टटोल रहा था...उसे बार-बार डर सता रहा था कि कहीं उसकी महंगी जिन्स इन सिक्कों को न निगल जाए....खैर पत्रकार साहब घर से निकल पड़े....पत्रकारिता जगत में एक धमाका करने......वैसे ये भी उनकी निजी राय है...क्योंकि हमने तो ऐसे किसी धमाके की आवाज़ अभी तक सुनी नहीं....खैर ये साहब जब घर से निकलते तो पता नहीं अपने आपको क्या समझते हैं...रात-रात भर अनाप-शनाप किताबें पढ़ते हैं और सुबह उस ज्ञान को अपने उपर वाले माले में लाद कर चल देते हैं.....इनकी जेब में आज अड़तालीस रूपए थे.....लेकिन फिर भी इनके मन में ये चल रहा था वित्त मंत्री प्रणबमुखर्जी अपने बजट में क्या ख़ास करेंगें.....तपती धूप ने इनके पसीने निकाल दिए थे.....और इनको ये भी पता था कि इनकी जेब से अड़तालीस रूपए भी निकलने वाले हैं.....लेकिन फिर भी बेखौफ...बेधड़क ये युवा जुझारू पत्रकार(ये उनकी निजी राय है) ऑटो में सवार हो गया....फिर शुरू हुआ....नयन मट्टका....लेकिन किसी हसीना से नहीं बल्कि ऑटो के मीटर से.....जैसे ही ऑटो का मीटर चालीस के आसपास पहुंचा तो पत्रकार साहब ने ऑटो रूकवाया और बड़ी अदब से पैंतालीस रूपए ऑटोचालक को दिए.....और फिर तपती धूप में चल दिए.....बारूद की फैक्ट्री की तरफ.....जहां वो रोज़ कोई बड़ा धमाका करने जाते हैं.....लेकिन बारूद की इस फैक्ट्री तक पहुंते-पहुंचते उनका सारा ज्ञान गायब सा हो गया था........लेकिन अभी भी उनकी जेब में एक-एक रूपए के तीन सिक्के थे...जो उन्होंने अपने पूजा घर से उठाए थे....और ऑफिस पहुंचते ही जब इन साहब को नब्बे करोड़ सालाना सैलरी वाले शख्स की खबर लिखनी पड़ी....तो आप समझ ही सकते हैं न उनपर क्या गुज़री होगी...
11 comments:
bhai...lagta he pure baat lek nahi paye....vaise acha likha hai...
उसी निजी कंपनी से जुडा एक दिलचस्प किस्सा याद आ रहा है... हालाँकि हम यार-दोस्तों को वो दिन अछे से याद होगा जब हम कागज की पर्चियों को रूपए में तब्दील कर लिया करते हैं... खैर कहानी कुछ यूँ है की मुफलिसी के दिन थे और हमारी कैंटीन के मैनेजर साहब हमे पैसों के बदले सफ़ेद कागज़ की छोटी सी पर्ची पर एक थाली या चार चाय लिख के दे देते और हम उसे किचेन में दे कर उसके बदले वो सामान ले लेते....
खैर तो मै बता रहा था की मुफलिसी के दिन थे जेब में पैसे होते नहीं थे तो ऐसे में हमें आया एक नायब आइडिया... हम खुद ही कागज की पर्चियां बनाते... और उस पर मन चाहा सामान लिख कर सामान ले लेते थे... जब तक सैलरी नहीं आई ये तरीका बार-बार आजमाया जाता रहा था...
खैर रोहित भाई की आज की पोस्ट पढ़कर ये वाक्या याद आ गया...
भगवन रोहित भाई को मुफलिसी के दिन से जल्दी उबारे..
शुभकामनायें...!!!
ye dard jo juba se nahi, balki post ke jariye jo apne bayan kiya hai. ye jayadatar logo ka haal hai. main bhi roj office nikalne se pahale apana pocket check karta hoon. in dino main kosis karta hoon ki bus me safar karne ke dauran kuch rupeyaa bach jaye.
कितने ही ऐसे ही कुछ दर्द से गुजरते होंगे.
Somebody has said humour is the ultimate expression of pain..Rohit bhai,these words just about touch that taste..Hasn't somebody told you yet that u can be a writer ?
likhte rahiye.
theek kaha hai aap ne par woh shks kam se kam kisi ko nuksan toh nahi pahuncha raha hai .......sab ke din firenge ..lage raho
wonderful, I must say
whether that journo did something gr8 or nt, that i dnt knw. Bt here u rocked truly.
Liked the lines on the masthead of ur blog.... Revolution always guided by the power of love :)
अच्छा लिखा है, पत्रकारों की वो सच्चाई जिसको लिखने में भई मज़ा नहीं आता लोगों को और सुनने पढ़ने में भी, लेकिन हां पत्रकारों को गालियां देना आजकल फैशन हो गया है
Sabhi Bhaiyon ko Chet Ram ki Namste... happy new year. Chet Ram ki Chaapatiyon aur daal ko mat bhul jana!!!!!!
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