जब डिस्क में आई अम्मा की याद...
कुछ दिन पहले मैं अपने कुछ दोस्तों के साथ डिस्क गया जहां पर ज़ोर-ज़ोर से म्यूज़िक बज रहा था....सब लोग मस्ती कर रहे थे....हमारे सामने एक लड़कियों का ग्रुप था.... जो सिगरेट के कश लगा रही थी...हमने सोचना क्यों ना इनसे बात कर ली जाए.....हम लोग इनके पास गए और लाइटर मांगा....इसके बाद बातचीत शुरू हुई...यानी सोशलाइज़ करने का ज़रिया सिगरेट बनी...लेकिन उनसे कुछ देर बात करने के बाद हमें उनकी बातों में कुछ खोखलापन नज़र आने लगा..... हमारे ग्रुप में से किसी ने उनसे पूछा कि आखिर आप सिगरेट क्यों पीती हैं.....लड़कियों ने जो जवाब दिया उसे सुनकर मुझे बड़ी हंसी आई....उस जवाब का लब्बोलुआब यही था कि...वो अपने आपको मॉड दिखाने के लिए सिगरेट के कश लगा रही हैं....ये बात सुनकर मुझे डिस्क में ही अम्मा की याद आ गई....
बच्चपन से ही मैने अपने गांव में आमा(अम्मा) को देखा था.... बडा सा चश्मा लगाए हाथ में सोठी लिए घर के आंगन में पूरे रौब के साथ चलती थी अम्मा .....हालांकि अम्मा को कुछ कम सुनाई देता था....उनके चेहरे पर खूब सारी झुरियां पड़ी थी...लेकिन फिर भी अम्मा का अंदाज़ अपना ही था......कभी भी किसी को भी डांट दिया करती थी अम्मा....अगर घर के आंगन से कोई अजनबी गुज़र जाए तो अम्मा उसकी जमकर ख़बर लेती थी....अम्मा से सब डरते थे.....लेकिन अम्मा मुझसे और मेरी दीदी से खूब प्यार करती थी....अम्मा हुक्का पिया करती थी....लेकिन फिर बाद में हुक्के के झंझट से बचने के लिए अम्मा सिगरेट पीने लगी..... हाथ में सिगरेट लिए अम्मा को मैने कई बार कश लगाते हुए देखा था...लेकिन अम्मा हमें बार-बार ये बताती थी कि ये बूरी चीज़ है....
अक्सर मैं और मेरी दीदी स्कूल से आते थे तो कई बार अम्मा हमें अपने कमरे में ले जाती थी और अपना संदुक खोलकर कुछ सामान दिखाती थी....उस सामान में कई कपड़े ,गहने और दूसरा सामान था.....और अम्मा समझाती थी कि जब मैं इस दुनिया से चली जाउंगी तो हिन्दू धर्म के मुताबिक जो जो कर्मकांड होते हैं ये सब उसका सामान है......आज सोचता हूं कितनी समझदार थी मेरी अम्मा....हालांकि अम्मा पढ़ी लिखी नहीं थी.....लेकिन फिर भी अम्मा की समझदारी किसी से कम नहीं....मेरी अम्मा भी हुक्के, सिगरेट के कश लगाया करती थी.....यानी मेरी अम्मा भी मॉड थी.....लेकिन उन लड़कियों से अम्मा की तुलना करना किसी भी सूरत में ठीक नहीं है....चुपचाप दिन भर आंगन के छोर पर बैठी रहने वाली अम्मा पता नहीं क्या-क्या सोचती रहती थी....
दिल्ली आने के बाद मुझे समझ में आया कि मेरा गांव तो इस लिहाज़ से बहुत मॉड है.....साथ ही ये भी समझ में आया कि पुराने ज़माने जैसा कोई शब्द नहीं होता....सबकुछ वैसा ही है....अगर कुछ बदला है तो सिर्फ पहनावा.... मेरे गांव में कई बूढ़ी औरते हुक्के के कश भी लगाती हैं....और वह्स्की की चुस्कियां भी लगाती हैं...लेकिन बावजूद इसके गांव घर परिवार में उनकी इज़्जत होती है.....बस फर्क सिर्फ इतना है कि वहां पर कान फाड़ने वाले म्यूज़िक की जगह धीमे-धीमे बजने वाला म्यूज़िक होता है.... बड़ा सा आंगन आसपास पेड़ पौधे....साथ में बहती हुई ठंडी-ठंडी हवा....अब ये आप तय करें कि कौन ज्यादा मॉड है...................