Friday, June 19, 2009

दो बहने, दोनों अधनंगी/ एक आधुनिका एक भीखमंगी

सबसे खतरनाक होता घर से ऑफिस और आफिस के घर जाना सबसे घतरनाक होता है जिन्दा सपनों का मर जाना.....ये पक्तियां पाश की हैं मेरी नहीं......खैर सपने तो भी जिन्दा हैं...मरे नहीं है....लेकिन घर से ऑफिस और ऑफिस से घर जाने का सफर शुरू हो चुका है....इस सफर के दौरान कई घटनाएं घटती हैं....उन्हीं में से एक के बारे में बताना चाहता हूं.....ये कहानी है दो बहनों की......यानी दो बहने दोनो अधनंगी एक आधुनिका एक भीख मंगी.......खैर जब कभी ऑटो से सफर करता हूं तो अक्सर रैड लाईट पर ऑटो रूकता है और और मैं अनायास ही ऑटो से सामने खड़ी गाड़ी....की तरफ झांकने लगता हूं.....हालांकि गाड़ियां बहुत होती हैं....लेकिन मेरी नज़र अक्सर उसी गाड़ी पर पड़ती है... जिसमें एक खूबसूरत सी दिखने वाली बला की बाला सवार रहती है.....बार बार उनको देखने का मन करता है....इसलिए नहीं कि वो बेहद खूबसूरत होती हैं.....बल्किन उनके पहनावे की वजह से...... ये बालाएं महज़ तन को ढकने के लिए और बेहद सोच समझ कर कम कपड़े पहनती हैं....हालांकि इनपर ये पहनावा खूब फबता भी है.... इसी बीच अक्सर ऑटो के पास उतने की कम कपड़ों में हाथ फैलाए कुछ बच्चियां आती हैं.... लेकिन ये अपनी मर्जी से इस तरह की कपड़े नहीं पहनती....बल्कि इन्हें मजूबरन ये पहनावा पहनना पड़ता है.....फिर शुरू होता है एक रूपया..दो रूपया दे दो ....ये बोलने का दौर.....लेकिन जब ये दौर चलता है तो बहुत गुस्सा आता है और मुंह से यही निकलता है.. कि कुछ नहीं है... चले जाओ......जबकि गाड़ी में बैठी बला की बाला को देखकर खाली जेब होते हुए भी ये कहने का मन नहीं करता... अब इसे विक्षिप्त मानसिकता कहूं..... मानव स्वभाव....या फिर मेरा देहाती पन.....जो भी हो लेकिन एक बात तो है..... वो दो बहने हीं है.....जिनमें से आधुनिका की तरफ को खूब ध्यान जाता है....लेकिन भीखमंगी की तरफ नज़र डालने का भी मन नहीं करता.....

5 comments:

Arvind Kumar Sharma 19 June, 2009 03:07  

sahe kaha hai yaar..
arvind sharma

manas mishra 19 June, 2009 03:16  

सर हमारे साथ समस्या हो कि हम सोच सकते हैं लेकिन कुछ कर नही सकते। जो कर रहे हैं वो माओवादी कहे जाते हैं। अब वो हमारी नजरों गलत कर रहें। लेकिन ये वही है जिनकी घर की बहु बेटियां और वो खुद मजबूरी में कम कपड़े पहनते हैं।
भूखे हैं फिर भी लड़ रहे है। सर एसे ही लिखते रहिये शायद कोइ तहलका हो जाय।

Anonymous 19 June, 2009 21:35  

दो नारियां, दोनों अधनंगी
एक आधुनिका, एक भिखमंगी..
मंडी कॉलेज के कैंटीन में लिखी ये पंक्तियां आज भी याद हैं आपको..जानकर अच्छा लगा..।

deepak sharma 20 June, 2009 05:46  

भाई साहब ....
जिस के पास सब है उस को कधर नहीं और
जिसे कधर है उसे मिलता नहीं

Unknown 29 June, 2010 00:38  

Hi
its a thought... u should continue writing....dunn forget your soul and even dunn kill your soul in this so called 'आधुनिक युग'.... wenever you'll write na you'll feel the difference in yourself and then u'll realise कि आप इस 'आधुनिक युग'का हिस्सा नहीं...so keep writing becoz someone is waiting, to read you...i read all ur thoughts but the best one is "दो बहने, दोनों अधनंगी/ एक आधुनिका एक भीखमंगी'...very few ppl realise the difference between them and others... those who realise, will have the power to change the world (like you) and i have never thought of those ppl who do nthing for others even they have everything...तो उनके बारे में कहने से फायदा नहीं,हमें भी काफी बार यही ख़याल आया है शायद यही वजह है कि हमें आपके विचार अच्छे लगे। पर वक्त के साथ सब धुन्दला होता गया...हमारे विचार दूसरों पर कभी हावी नहीं हो सकते...फिर एक दिन एहसास हुआ कि किसी को कुछ कहने की जरुरत नही होती अगर आप सही है तो लोग आपके पीछे पीछे ख़ुद ब ख़ुद चलने लगते है। एसा ही एक बार हमारे साथ भी हुआ -- हम अकसर अपने दोस्तों के साथ जाया करते है वह सब हमें यही समझाया करतीं है कि उनके मां बाप हमेशा उन्हें भीख देने से मना किया करते हैं,और हम भी ऐसा ना किया करें...हमनें उन्हे बस यही कहा कि हमारे मां पा ने तो कभी हमें इस 'भीख' शब्द से नहीं मिलवाया...फिर हमने कुछ नहीं कहा...अगली बार जब हम सब साथ गए तो एक बूढी अम्मा की तो सबने झोली भर दी और उस रोज्ञ हमारी जेब खाली थी...उस दिन एहसास हुआ कि अगर हम दुनिया बदलने निकलेंगे तो खुद ही खो जाएगें...so rohit ji its our thought,Sanskar which has been injectd by our parents in us and if your thought changes anyones world silently then that will be the biggest achievement in our life..
thanx
hope to read you soon ...keep writing..takecare see ya

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